Adhik Maas Katha Adhyay 7, Purushottam Maas Katha Adhyay 7

पुरुषोतम मास माहात्म्य/अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 7 (Adhik Maas Adhyay 7, Purushottam Maas Adhyay 7)

पुरुषोतम मास माहात्म्य / अधिक मास माहात्म्य अध्याय – 7


adhik maas mahatmya adhyay 7

सूतजी बोले:-

हे तपोधन! आप लोगों ने जो प्रश्न किया है वही प्रश्न नारद ने नारायण से किया था सो नारायण ने जो उत्तर दिया वही हम आप लोगों से कहते हैं ॥ १ ॥

नारदजी बोले:-

विष्णु ने अधिमास का अपार दुःख निवेदन करके जब मौन धारण किया तब हे बदरीपते! पुरुषोत्तम ने क्या किया? सो इस समय आप हमसे कहिये ॥ २ ॥

श्रीनारायण बोले :-

 हे वत्स! गोलोकनाथ श्रीकृष्ण ने विष्णु के प्रति जो कहा वह अत्यन्त गुप्त है परन्तु भक्त, आस्तिक, सेवक, दम्भरहित, अधिकारी पुरुष को कहना चाहिये। अतः मैं सब कहता हूँ सुनो ॥ ३ ॥

यह आख्यान सत्कीर्ति, पुण्य, यश, सुपुत्र का दाता, राजा को वश में करने वाला है और दरिद्रता को नाश करने वाला एवं बड़े पुण्यों से सुनने को मिलता है। जिस प्रकार इसको सुने उसी प्रकार अनन्य भक्ति से सुने हुए कर्मों को करना भी चाहिये ॥ ४ ॥

श्रीपुरुषोत्तम बोले :-

हे विष्णो! आपने बड़ा अच्छा किया जो मलमास को लेकर यहाँ आये। इससे आप लोक में कीर्ति पावेंगे ॥ ५ ॥
आपने जिसका उद्धार स्वीकार किया, उसको हमने ही स्वीकार किया, ऐसा समझें। अतः इसको हम अपने समान सर्वोपरि करेंगे ॥ ६ ॥
गुणों से, कीर्ति के अनुभाव से, षडैश्वयर्य से, पराक्रम से, भक्तों को वर देने से और भी जो मेरे गुण हैं, उनसे मैं पुरुषोत्तम जैसे लोक में प्रसिद्ध हूँ। वैसे ही यह मलमास भी लोकों में पुरुषोत्तम करके प्रसिद्ध होगा ॥ ७-८ ॥
मेरे में जितने गुण हैं वे सब आज से मैंने इसे दे दिये। पुरुषोत्तम जो मेरा नाम लोक तथा वेद में प्रसिद्ध है ॥ ९ ॥
वह भी आपकी प्रसन्नता का अर्थ आज मैंने इसे दे दिया। हे मधुसूदन! आज से मैं इस अधिमास का स्वामी भी हुआ ॥ १० ॥
इसके पुरुषोत्तम इस नाम से सब जगत् पवित्र होगा। मेरी समानता पाकर यह अधिमास सब मासों का राजा होगा ॥ ११ ॥
यह अधिमास जगत्पूज्य एवं जगत् से वन्दना करवाने के योग्य होगा। इसकी पूजा और व्रत जो करेंगे उनके दुःख और दारिद्रय का नाश होगा ॥ १२ ॥
चैत्रादि सब मास सकाम हैं इसको हमने निष्काम किया है। इसको हमने अपने समान समस्त प्राणियों को मोक्ष देने वाला बनाया है ॥ १३ ॥
जो प्राणी सकाम अथवा निष्काम होकर अधिमास का पूजन करेगा वह अपने सब कर्मों को भस्म कर निश्चय मुझको प्राप्त होगा ॥ १४ ॥
जिस परम पद-प्राप्ति के लिये बड़े भाग्यवाले, यति, ब्रह्मचारी लोग तप करते हैं और महात्मा लोग निराहार व्रत करते हैं एवं दृढ़व्रत लोग फल, पत्ता, वायु-भक्षण कर रहते हैं और काम, क्रोध रहित जितेन्द्रिय रहते हैं वे, और वर्षाकाल में मैदान में रहने वाले, जाड़े में शीत, गरमी में धूप सहन करने वाले – मेरे पद के लिये यत्नद करते रहते हैं, हे गरुडध्वज! तब भी वे मेरे अव्यय परम पद को नहीं प्राप्त होते हैं ॥ १५-१६-१७ ॥
परन्तु पुरुषोत्तम के भक्त एक मास के ही व्रत से बिना परिश्रम जरा, मृत्यु रहित उस परम पद को पाते हैं ॥ १८ ॥
यह अधिमास व्रत सम्पूर्ण साधनों में श्रेष्ठ साधन है और समस्त कामनाओं के फल की सिद्धि को देने वाला है। अतः इस पुरुषोत्तम मास का व्रत सबको करना चाहिये ॥ १९ ॥
हल से खेत में बोये हुए बीज जैसे करोड़ों गुणा बढ़ते हैं तैसे मेरे पुरुषोत्तम मास में किया हुआ पुण्य करोड़ों गुणा अधिक होता है ॥ २० ॥
कोई चातुर्मास्यादि यज्ञ करने से स्वर्ग में जाते हैं, वह भी भोगों को भोगकर पृथ्वी पर आते हैं ॥ २१ ॥
परन्तु जो पुरुष आदर से विधिपूर्वक अधिमास का व्रत करता है वह अपने समस्त कुल का उद्धार कर मेरे में मिल जाता है इसमें संशय नहीं है ॥ २२ ॥
हमको प्राप्त होकर प्राणी पुनः जन्म, मृत्यु, भय से युक्त एवं आधि, व्याधि और जरा से ग्रस्त संसार में फिर नहीं आता ॥ २३ ॥
जहाँ जाकर फिर पतन नहीं होता सो मेरा परम धाम है, ऐसा जो वेदों का वचन है वह सत्य है, असत्य कैसे हो सकता है? ॥ २४ ॥
यह अधिमास और इसका स्वामी मैं ही हूँ और मैंने ही इसे बनाया है और ‘पुरुषोत्तम’ यह जो मेरा नाम है सो भी मैंने इसे दे दिया है ॥ २५ ॥
अतः इसके भक्तों की मुझे दिन-रात चिन्ता बनी रहती है। उसके भक्तों की मनःकामनाओं को मुझे ही पूर्ण करना पड़ता है ॥ २६ ॥
कभी-कभी मेरे भक्तों का अपराध भी गणना में आ जाता है, परन्तु पुरुषोत्तम मास के भक्तों का अपराध मैं कभी नहीं गिनता ॥ २७ ॥
हे विष्णो! मेरी आराधना से मेरे भक्तों की आराधना करना मुझे प्रिय है। मेरे भक्तों की कामना पूर्ण करने में मुझे कभी देर भी हो जाती है ॥ २८ ॥
किन्तु मेरे मास के जो भक्त हैं उनकी कामना पूर्ण करने में मुझे कभी भी विलम्ब नहीं होता है। मेरे मास के जो भक्त हैं वे मेरे अत्यन्त प्रिय हैं ॥ २९ ॥
जो मनुष्य इस अधिमास में जप, दान नहीं करते वे महामूर्ख हैं और जो पुण्य कर्मरहित प्राणी स्नान भी नहीं करते एवं देवता, तीर्थ द्विजों से द्वेष करते हैं ॥ ३० ॥
वे दुष्ट अभागी और दूसरे के भाग्य से जीवन चलने वाले होते हैं। जिस प्रकार खरगोश के सींग कदापि नहीं होते वैसे ही अधिमास में स्नानादि न करने वालों को स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं होता है ॥ ३१ ॥
जो मूर्ख मेरे प्रिय मलमास का निरादर करते हैं और मलमास में धर्माचरण नहीं करते वे सर्वदा नरकगामी होते हैं ॥ ३२ ॥
प्रति तीसरे वर्ष पुरुषोत्तम मास प्राप्त होने पर जो प्राणी धर्म नहीं करते वे कुम्भीपाक नरक में गिरते हैं ॥ ३३ ॥
और इस लोक में दुःख रूप अग्नि में बैठे स्त्री, पुत्र, पौत्र आदिकों से उत्पन्न बड़े भारी दुःखों को भोगते हैं ॥ ३४ ॥
जिन प्राणियों को यह मेरा पुण्यतम पुरुषोत्तम मास अज्ञान से व्यतीत हो जाय वे प्राणी कैसे सुखों को भोग सकते हैं? ॥ ३५ ॥
जो भाग्यशालिनी स्त्रियाँ सौभाग्य और पुत्र-सुख चाहने की इच्छा से अधिमास में स्नान, दान, पूजनादि करती हैं ॥ ३६ ॥
उन्हें सौभाग्य, सम्पूर्ण सम्पत्ति और पुत्रादि यह अधिमास देत है। जिनका यह मेरे नामवाला पुरुषोत्तम मास दानादि से रहित बीत जाता है ॥ ३७ ॥
उनके अनुकूल मैं नहीं रहता और न उन्हें पति-सुख प्राप्त होता है, भाई, पुत्र, धनों का सुख तो उसे स्वप्न में भी दुर्लभ है ॥ ३८ ॥
अतः विशेष करके सब प्राणियों को अधिमास में स्नान, पूजा, जप आदि और विशेष करके शक्ति के अनुसार दान अवश्य कर्तव्य है ॥ ३९ ॥
जो मनुष्य इस पुरुषोत्तम मास में भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करते हैं वे धन, पुत्र और अनेक सुखों को भोगकर पुनः गोलोक के वासी होते हैं ॥ ४० ॥
मेरी आज्ञा से सब जन मेरे अधिमास का पूजन करेंगे। मैंने सब मासों से उत्तम मास इसे बनाया है ॥ ४१
इसलिये अधिमास की चिन्ता त्याग कर हे रमापते! आप इस अतुलनीय पुरुषोत्तम मास को साथ सेकर अपने बैकुण्ठ में जाओ ॥ ४२ ॥

श्रीनारायण बोले – 

इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से रसिक वचन श्रवण कर विष्णु, अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक इस मलमास को अपने साथ लेकर, नूतन जलधर के समान श्याम भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम कर, गरुड़ पर सवार हो शीघ्र बैकुण्ठ के प्रति चल दिये ॥ ४३ ॥

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये श्रीनारायणनारदसंवादेऽधिमासस्यैश्वर्यप्राप्तिर्नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥

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