यशोदा जयंती के दिन करें माँ यशोदा और श्री कृष्ण की पूजा, होगी उत्तम संतान की प्राप्ति

यशोदा जयंती के दिन करें माँ यशोदा और श्री कृष्ण की पूजा, होगी उत्तम संतान की प्राप्ति

यशोदा जयंती हिंदू धर्म का एक विशेष पर्व है, जो कन्हैया की मैया ‘यशोदा’ के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हर साल फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर यशोदा जयंती (Yashoda Jayanti 2025) मनाई जाती है। यशोदा जी का जन्म ब्रज में स्थित सुमुख नाम के गोप और उनकी पत्नी पाटला के यहां हुआ था। यद्यपि कृष्ण को जन्म तो देवकी ने दिया था, लेकिन उनका लालन पालन करने का अवसर और मातृत्व का सुख यशोदा रानी को मिला।

यशोदा जयंती को लेकर शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि यदि कोई स्त्री इस दिन माता यशोदा और श्री कृष्ण की विधिवत पूजा करती है, तो उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है, और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

यशोदा जयंती के दिन माता यशोदा और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन एक साथ मां और पुत्र के पवित्र प्यार को समर्पित होता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक इसलिए, इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजा अर्चना करने से सर्वश्रेष्ठ संतान कि प्राप्ति होता है.

इस साल फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि की आरंभ 18 फरवरी 2025 को प्रातः काल 04 बजकर 53 मिनट पर हो जाएंगी. वहीं इस तिथि का समाप्ति 19 फरवरी 2025 को सुबह 07 बजकर 32 मिनट पर होगी. ऐसे में इस साल यशोदा जयंती 18 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी.

ये व्रत संतान प्राप्ति के लिए वरदान

महिलाओं के लिए यशोदा जयंती का दिन और इसका का व्रत बहुत ही खास माना जाता है.क्योंकि यशोदा जयंती का व्रत मां अपने संतान के प्रति प्यार का प्रतीक को दर्शाता है.वहीं इस जयंती पर महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी समृद्धि जीवन और भविष्य की कामना करते हुए इस व्रत को रखती हैं.धार्मिक विधान द्वारा इस दिन व्रत के साथ-साथ मां यशोदा की गोद में बैठे हुए बाल रूप भगवान कृष्ण की प्रतिमा की पूजा किया जाता है.ऐसी मान्यता है कि इस व्रत विधि से संतान प्राप्ति की मनोकामना शीघ्र ही पूर्ण होती है.

माना जाता है कि मां यशोदा के नाम श्रवण से ही मन में ममता की प्रतिमूर्ति प्रकाशित हो जाती है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान के मंगल-कुशल के लिए व्रत करती हैं. यशोदा जयंती का पर्व गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय राज्यों में बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है.     

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