Ekdanta Sankashti Chaturthi 2025: जानें कब है व्रत, पूजा विधि और इसका चमत्कारी महत्व!

एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2025: जीवन की बाधाएं दूर करने वाला गणेश व्रत

ekdanta sankashti chaturthi

एकदंत संकष्टी चतुर्थी भगवान श्रीगणेश को समर्पित एक विशेष पर्व है, जिसे हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। "संकष्टी" का अर्थ होता है "संकटों को हरने वाली", जबकि "चतुर्थी" का तात्पर्य उस तिथि से है जो चंद्रमा के घटते चरण की चौथी तिथि होती है। इस दिन भक्त गणेश जी के "एकदंत" स्वरूप की आराधना करते हैं। "एकदंत" का मतलब है "एक दांत वाले" — यह रूप ज्ञान, विवेक और धैर्य का प्रतीक माना जाता है।

इस व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करना होता है ताकि जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और कष्ट दूर हो सकें। श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं और विधिपूर्वक पूजा करते हैं। यह व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिए भी किया जाता है।

2025 में एकदंत संकष्टी चतुर्थी की तिथि व समय

हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 मई, शुक्रवार को सुबह 4:02 बजे शुरू होकर 17 मई, शनिवार को सुबह 5:13 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार व्रत 16 मई को रखा जाएगा। इस दिन चंद्रोदय रात 10:39 बजे होगा, और इसी समय गणेश पूजन किया जाता है।

पूजा विधि और महत्व

इस दिन सुबह और शाम दोनों समय भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजा में घी से बनी मिठाइयों का भोग लगाना शुभ माना जाता है। ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करें। भविष्य पुराण में उल्लेख है कि इस व्रत को करने से जीवन की सभी तरह की परेशानियां दूर होती हैं। खासतौर पर चंद्रमा को अर्घ्य देने से वैवाहिक जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।

इस चतुर्थी का पालन करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। संकष्टी व्रत विशेष रूप से सुख-समृद्धि और पारिवारिक कल्याण के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

व्रत की पौराणिक पृष्ठभूमि

संकष्टी चतुर्थी की परंपरा बहुत प्राचीन है। पुराणों में इसके कई संदर्भ मिलते हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, सतयुग में राजा पृथु ने सौ यज्ञ किए थे। उनके राज्य में दयादेव नामक ब्राह्मण की बहू अपनी सास की अनुमति के बिना संकष्टी चतुर्थी का व्रत करती थी। गणेशजी की कृपा से उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। इस घटना से इस व्रत के महत्व का संकेत मिलता है।

अन्य कथाओं में कहा गया है कि इसी दिन भगवान गणेश को सभी देवताओं में सबसे श्रेष्ठ घोषित किया गया था। यह भी माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेशजी स्वयं धरती पर आकर भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं। हर माह की संकष्टी चतुर्थी का अपना विशेष नाम होता है, और ज्येष्ठ मास में पड़ने वाली चतुर्थी को "एकदंत संकष्टी चतुर्थी" कहा जाता है।

एकदंत संकष्टी चतुर्थी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। यह दिन भक्तों को न केवल आध्यात्मिक बल देता है, बल्कि उनके जीवन की बाधाओं को दूर करने में भी मदद करता है। भगवान गणेश की उपासना से जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

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