Sawan Shivratri Vrat Katha In Hindi: सावन शिवरात्रि के दिन इस पौराणिक कथा का पाठ करें, आपकी पूजा सफल होगी।

Sawan Shivratri Vrat Katha (सावन शिवरात्रि व्रत कथा):

sawan shivratri katha in hindi

सावन शिवरात्रि को महादेव की आराधना का अत्यंत पवित्र दिन माना जाता है, इसलिए अनेक लोग इस दिन व्रत रखते हैं। कहा जाता है कि श्रावण शिवरात्रि का व्रत रखने से भक्तों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रत रखने वाले भक्तों को प्रातःकाल उठकर स्नान करना चाहिए और माथे पर भस्म का तिलक लगाना चाहिए। संध्या के समय विधिपूर्वक शिव शंकर की पूजा करनी चाहिए और शिवरात्रि की कथा अवश्य सुननी चाहिए। सावन शिवरात्रि व्रत कथा यहां देखें।

Sawan Shivratri Vrat Katha In Hindi (सावन शिवरात्रि व्रत कथा)

प्राचीन समय में एक चित्रभानु नाम का शिकारी था। जो अपने परिवार का पोषण पशुओं की हत्या करके करता था। उसने एक साहूकार से कर्ज ले रखा था लेकिन कर्ज न चुका पाने के कारण क्रोधित साहूकार ने शिकारी को बंदी बना लिया था। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। बंदी रहते हुए शिकारी ने शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनी और वहीं उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुन ली। फिर शाम म साहूकार ने उसे बुलाया और पूछा कि कर्ज कब तक चुका दोगे तब शिकारी ने उसे अगले दिन ही कर्ज चुकाने का वादा किया। साहुकार ने उसे जाने दिया। इसके बाद शिकारी जंगल में शिकार के लिए निक गया। दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण शिकारी को बहुत भूख-प्यास लग रही थी।

जंगल में इधर उधर भटकने के बाद वह एक जलाशय के पास गया और वहां पर ही एक पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर चढ़ गया। शिकारी अब वही पर बैठकर शिकार का इंतजार करने लगा। शिकारी जिस पेड़ पर बैठा था वो बेल-पत्र का पेड़ था और उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो बेलपत्रों से ढका होने के कारण शिकारी को दिखाई नहीं दिया था। भूख और प्‍यास से थका वो उसी मचान पर बैठ गया।

शिकारी ने मचान बनाते समय पेड़ की कुछ टहनियां तोड़ीं, संयोग से ये टहनियां शिवलिंग पर जा गिरीं। इस प्रकार शिकारी ने दिनभर भूखे-प्यासे रहकर अनजाने में ही सही पर शिवरात्रि का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ दिए। रात्रि का एक प्रहर बीतने के बात एक गर्भिणी मृगी तालाब के किनारे पानी पीने के लिए पहुंची। शिकारी ने उसे मारने के लिए अपना धनुष उठाया और संयोग से फिर से उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते और जल की बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिर गईं और अनजाने में ही सही शिकारी की प्रथम प्रहर पूजा संपन्न हो गई।

मृगी शिकारी को देखकर बोली मैं गर्भिणी हूं शीघ्र ही प्रसव करूंगी। मैं वादा करती हूं कि बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगी, तब मार लेना मुझे। शिकारी ने मृगी को जाने दिया। कुछ देर बाद एक और मृगी वहां आई। शिकारी ने उसे देखकर धनुष पर बाण चढ़ा दिया। शिकारी ने जैसे ही धनुष उठाया वैसे ही अनजाने में कुछ और बेलपत्र उसके हाथ से नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और इस तरह से उसकी दूसरे प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई।

इस मृगी ने भी विनम्रतापूर्वक शिकारी से निवेदन किया, क‍ि मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। अपने प्रिय की तलाश कर रही हूं। मैं वचन देती हूं कि अपने पति से मिलकर शीघ्र ही वापस आ जाऊंगी। तब मुझे मार लेना। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। अब रात्रि का आखिरी पहर बीतने को था। फिर एक और मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी ने उसे मारने के लिए तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ा दिया। ये देख मृगी बोली, मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंपकर वापस लौट आऊंगी। तब मुझे मार लेना। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

शिकार न कर पाने के कारण शिकारी परेशान हो गया और पेड़ पर बैठा हुआ वह बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। इस तरह से उसके हाथों से तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गयी। सुबह होने को थी कि अब एक मृग उस रास्ते पर आया। अब शिकारी न सोचा कि चाहे कुछ भी हो जाए इस बार वो शिकार की नहीं सुनेगा।

शिकारी को देख मृग ने कहा कि यदि तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन मृगियों और उनके बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी शीघ्र मार दो क्योंकि मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जाने दिया है तो मुझे भी कुछ समय के लिए जीवनदान दे दो। मैं वादा करता हूं कि उनसे मिलकर तुम्हारे पास उपस्थित हो जाऊंगा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। जाने अनजाने में ही सही लेकिन शिकारी के द्वारा उपवास, रात्रि-जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से उसका हिंसक हृदय अब निर्मल हो गया था। थोड़ी देर में वह मृग अपनी पत्नियों के साथ शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता और सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को अपने आप पर बड़ी ग्लानि महसूस हुई। उसकी आंथों से आंसू निकल पड़े। उसने मृग परिवार को जाने दिया और जीवन में कभी हिंसा न करने का निर्णय लिया।

शिकारी के ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे दर्शन देकर सुख-समृद्धि का वरदान दिया। साथ में उसे गुह नाम प्रदान किया। कहते हैं ये वही गुह था जिसके साथ भगवान श्री राम ने मित्रता की थी। इस प्रकार शिवरात्रि की कथा समाप्त हुई। ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव!

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