Chaturmas Vrat Katha in Hindi

चातुर्मास व्रत कथा

चातुर्मास व्रत भगवान विष्णु की भक्ति और साधना का विशेष समय है, जो चार महीनों (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) तक चलता है। इस अवधि के दौरान, भक्त व्रत रखते हैं, सात्विक आहार ग्रहण करते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

चातुर्मास व्रत कथा: 

प्राचीन समय में, एक महान राजा हरिश्चंद्र थे, जो अपनी सत्यनिष्ठा और धर्मपरायणता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संतुष्ट थी। एक बार भगवान विष्णु ने उनकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वे एक साधु का रूप धारण करके राजा के पास आए और उनसे धन की मांग की। राजा ने खुशी-खुशी साधु को धन दिया।

साधु ने तीन बार धन मांगा और राजा हर बार सहर्ष धन देता रहा। आखिरकार, साधु ने राजा से कहा कि वह चातुर्मास व्रत का पालन करें। राजा हरिश्चंद्र ने साधु की आज्ञा का पालन किया और चातुर्मास व्रत रखा। उन्होंने चार महीनों तक संयमित जीवन जिया, सात्विक आहार ग्रहण किया और भगवान विष्णु की आराधना की। 

इस व्रत के फलस्वरूप, राजा हरिश्चंद्र को अद्भुत शक्तियाँ और अपार धन-संपत्ति प्राप्त हुई। भगवान विष्णु ने स्वयं दर्शन देकर राजा को आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भी भक्त इस चातुर्मास व्रत को श्रद्धा और भक्तिपूर्वक करेगा, उसे अपार धन, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

चातुर्मास से जुड़ी पौराणिक कथा

चातुर्मास से जुड़ी पौराणिक कथा भगवान विष्णु की योगनिद्रा और धरती पर धर्म की स्थापना से संबंधित है। 
प्राचीन समय में, धरती पर अधर्म और पाप बढ़ गए थे। इस स्थिति को देखकर भगवान विष्णु ने निर्णय लिया कि वे चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाएंगे ताकि इस समय का उपयोग धरती पर धर्म की पुनः स्थापना के लिए किया जा सके। भगवान विष्णु ने यह निर्णय लिया कि वे आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक योगनिद्रा में रहेंगे। 

जब भगवान विष्णु ने योगनिद्रा धारण की, तो देवी लक्ष्मी ने उनसे पूछा कि इस समय धरती का पालन-पोषण कौन करेगा। भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि धरती का पालन उन्हीं के भक्त करेंगे जो धर्म, सत्य और अहिंसा का पालन करेंगे। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने धरती के पालन का भार अपने भक्तों पर छोड़ दिया और स्वयं योगनिद्रा में चले गए।

इस अवधि को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। इस समय के दौरान, भक्तजन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत का पालन करते हैं।

एक अन्य कथा: 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा बलि से वचन लिया था कि वह अपने साम्राज्य का राज्याधिकार उन्हें सौंप देंगे। राजा बलि ने सहर्ष यह वचन दिया। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने यह वचन पूरा किया और भगवान विष्णु ने अपने तीन पगों से सम्पूर्ण धरती, आकाश और पाताल को नाप लिया। 

इस प्रकार, भगवान विष्णु ने राजा बलि के राज्य को अपने अधीन कर लिया और उसे पाताल भेज दिया। तत्पश्चात भगवान विष्णु ने राजा बलि से वचन लिया कि वे चार महीनों तक योगनिद्रा में रहेंगे और इस समय के दौरान राजा बलि को अपने राज्य का ध्यान रखना होगा। इस प्रकार, चातुर्मास का यह समय भगवान विष्णु की योगनिद्रा और राजा बलि की भक्ति का प्रतीक बन गया।

चातुर्मास व्रत का महत्त्व

चातुर्मास व्रत का महत्त्व भगवान विष्णु की भक्ति और साधना के माध्यम से उनकी कृपा प्राप्त करने में है। यह व्रत चार महीनों तक चलता है, जिसमें भक्त विशेष रूप से संयमित जीवन जीते हैं और सात्विक आहार ग्रहण करते हैं। इस व्रत को पालन करने से भक्तों को धर्म, सत्य और अहिंसा का पालन करने का अवसर मिलता है, जिससे उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

प्राचीन काल में जब संसार में अधर्म बढ़ने लगा था, तब भगवान विष्णु ने चार महीनों के लिए योगनिद्रा में जाने का निर्णय लिया। इस दौरान, देवी लक्ष्मी ने संसार के पालन का दायित्व संभाला। चातुर्मास का समय भगवान विष्णु के योगनिद्रा का समय माना जाता है और इस दौरान उनकी विशेष पूजा की जाती है। इस व्रत के पालन से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति आती है।

चातुर्मास व्रत के नियम

1.  सात्विक आहार:  चार महीनों तक व्रतधारी को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए।
2.  तामसिक पदार्थों का त्याग:  व्रतधारी को लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा और अन्य तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए।
3.  ब्रह्मचर्य का पालन:  चातुर्मास के दौरान व्रतधारी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
4.  भगवान विष्णु की पूजा:  प्रतिदिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
5.  सत्य और अहिंसा:  व्रतधारी को सत्य, अहिंसा और धर्म का पालन करना चाहिए।

चातुर्मास व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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