Adhik Maas Katha Adhyay 5, Purushottam Maas Katha Adhyay 5

पुरुषोतम मास माहात्म्य/अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 5 (Adhik Maas Adhyay 5, Purushottam Maas Adhyay 5)

पुरुषोतम मास माहात्म्य / अधिक मास माहात्म्य अध्याय – 5


जय श्री राधे कृष्णा ! 

adhik maas mahatmya adhyay 5

मल मास द्वारा अपने मर जाने की प्रार्थना भगवन श्री हरि को करना

देवऋषि नारद जी ने भगवान श्री नारायण से पूछा:-

हे महाभाग ! चरणों में पड़े अधिक मास को भगवान श्री हरि ने क्या उतर दिया और उससे क्या क्या कहा था? वह सम्पूर्ण वृतांत कृपा करके मुझसे विस्तारपूर्वक कहिये .

श्रीनारायण बोले:-

हे पापरहित! हे नारद! जो हरि ने मलमास के प्रति कहा वह हम कहते हैं , सुनो! हे मुनिश्रेष्ठ! आप जो सत्कथा हमसे पूछते हैं आप धन्य हैं

श्रीकृष्ण बोले:-

हे अर्जुन! बैकुण्ठ का वृत्तान्त हम तुम्हारे सम्मुख कहते हैं, सुनो! मलमास के मूर्छित हो जाने पर हरि के नेत्र से संकेत पाये हुए गरुड़ मूर्छित मलमास को पंख से हवा करने लगे। हवा लगने पर अधिमास उठ कर फिर बोला हे स्वामी! मै इस प्रकार का जीवन नहीं चाहता, मै तो आपकी शरण आया हु, मुझे त्यागिये नहीं.. हे जगत्‌ को उत्पन्न करने वाले! हे विष्णो! हे जगत्पते! मेरी रक्षा करो! रक्षा करो! हे नाथ! मुझ शरण आये की आज कैसे उपेक्षा कर रहे हैं ॥ ५ ॥ इस प्रकार कहकर काँपते हुए घड़ी-घड़ी विलाप करते हुए अधिमास, बैकुण्ठ में रहने वाले हृषीकेश हरि, से बोले।

अधिक मास की ये सब बाते सुन कर भगवान हृषीकेश बोले :-

हे पुत्र! उठो-उठो तुम्हारा कल्याण हो, हे वत्स! विषाद मत करो।

ऐसा कहकर प्रभु मन में सोचकर क्षणभर में उपाय निश्चय करके, पुनः अधिमास से बोले ॥ ८ ॥
श्री विष्णु बोले – हे वत्स! योगियों को भी जो दुर्लभ गोलोक है वहाँ मेरे साथ चलो जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम, ईश्वर रहते हैं ॥

गोपियों के समुदाय के मध्य में स्थित, दो भुजा वाले, मुरली को धारण किए हुए नवीन मेघ के समान श्याम, लाल कमल के सदृश नेत्र वाले ॥

शरत्पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान अति सुन्दर मुख वाले, करोड़ों कामदेव के लावण्य की मनोहर लीला के धाम ॥

पीताम्बर धारण किये हुए, माला पहिने, वनमाला से विभूषित, उत्तम रत्ना भरण धारण किये हुए, प्रेम के भूषण, भक्तों के ऊपर दया करने वाले ॥ 

चन्दन चर्चित सर्वांग, कस्तूरी और केशर से युक्त, वक्षस्थल में श्रीवत्स चिन्ह से शोभित, कौस्तुक मणि से विराजित ॥ १३ ॥ श्रेष्ठ से श्रेष्ठ रत्नों के सार से रचित किरीट वाले, कुण्डलों से प्रकाशमान, रत्नों के सिंहासन पर बैठे हुए, पार्षदों से घिरे हुए जो हैं ॥ १४ ॥

वही पुराण पुरुषोत्तम परब्रह्म हैं। वे सर्वतन्त्रर स्वतंत्र हैं, ब्रह्माण्ड के बीज, सबके आधार, परे से भी परे ॥

निस्पृह, निर्विकार, परिपूर्णतम, प्रभु, माया से परे, सर्वशक्तिसम्पन्न, गुणरहित, नित्यशरीरी ॥ ऐसे प्रभु जिस गोलोक में रहते हैं वहाँ हम दोनों चलते हैं वहाँ श्रीकृष्णचन्द्र तुम्हारा दुःख दूर करेंगे।

श्रीनारायण बोले :-

ऐसा कहकर अधिमास का हाथ पकड़ कर हरि, गोलोक को गये ॥ १७ ॥
हे मुने! जहाँ पहले के प्रलय के समय में वे अज्ञानरूप महा अन्धकार को दूर करने वाले, ज्ञानरूप मार्ग को दिखाने वाले केवल ज्योतिः स्वरूप थे ॥ १८ ॥ जो ज्योति करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाली, नित्य, असंख्य और विश्व की कारण थी तथा उन स्वेच्छामय विभुकी ही वह अतिरेक की चरम सीमा को प्राप्त थी ॥ १९ ॥ जिस ज्योति के अन्दर ही मनोहर तीन लोक विराजित हैं। हे मुने! उसके ऊपर अविनाशी ब्रह्म की तरह गोलोक विराजित है ॥ २० ॥ तीन करोड़ योजन का चौतरफा जिसका विस्तार है और मण्डलाकार जिसकी आकृति है, लहलहाता हुआ साक्षात् मूर्तिमान तेज का स्वरूप है, जिसकी भूमि रत्नमय है ॥ २१ ॥

योगीजन इसे स्वप्न में भी नहीं देख पाते, केवल वैष्णवजन ही वहाँ पहुच पाते है.. ईश्वकर ने योग द्वारा जिसे धारण कर रखा है ऐसा उत्तम लोक अन्तरिक्ष में स्थित है ॥ २२ ॥

आधि, व्याधि, बुढ़ापा, मृत्यु, शोक, भय आदि से रहित है, श्रेष्ठ रत्नों से भूषित असंख्य मनकों से शोभित है ॥ २३ ॥ उस गोलोक के नीचे पचास करोड़ योजन के विस्तार के भीतर दाहिने बैकुण्ठ और बाँयें उसी के समान मनोहर शिवलोक स्थित है ॥

आधि, व्याधि, बुढ़ापा, मृत्यु, शोक, भय आदि से रहित है, श्रेष्ठ रत्नों से भूषित असंख्य मनकों से शोभित है ॥ २३ ॥ उस गोलोक के नीचे पचास करोड़ योजन के विस्तार के भीतर दाहिने बैकुण्ठ और बाँयें उसी के समान मनोहर शिवलोक स्थित है ॥

बड़े भाग्यवान्‌ शंकर के गण जहाँ निवास करते हैं, शिवलोक में रहने वाले सब लोग सर्वांग भस्म धारण किये, नाग का यज्ञोपवीत पहने हुए ॥ २८ ॥ अर्धचन्द्र जिनके मस्तक में शोभित है, त्रिशूल और पट्टिशधारी, सब गंगा को धारण किये वीर हैं और सबके सब शंकर के समान जयशाली हैं ॥

गोलोक के अन्दर अति सुन्दर एक ज्योति है। वह ज्योति परम आनन्द को देने वाली और परमानन्द का कारण है ॥ ३० ॥ योगी लोग बराबर योग द्वारा ज्ञानचक्षु से आनन्द जनक, निराकार और पर से भी पर उसी ज्योति का ध्यान करते हैं ॥ ३१ ॥ उस ज्योति के अन्दर अत्यन्त सुन्दर एक रूप है जो कि नीलकमल के पत्तों के समान श्याम, लाल कमल के समान नेत्र वाले ॥ ३२ ॥

करोड़ों शरत्पूर्णिमा के चन्द्र के समान शोभायमान मुखवाले, करोड़ों कामदेव के समान सौन्दर्य की, लीला का सुन्दर धाम ॥ ३३ ॥ दो भुजा वाले, मुरली हाथ में लिए, मन्दहास्य युक्त, पीताम्बर धारण किए, श्रीवत्स चिह्न से शोभित वक्षःस्थल वाले, कौस्तुभमणि से सुशोभित ॥ ३४ ॥ करोड़ों उत्तम रत्नों से जटित चमचमाते किरीट और कुण्डलों को धारण किये, रत्न के सिंहासन पर विराजमान्‌, वनमाला से सुशोभित ॥ ३५ ॥

वही श्रीकृष्ण नाम वाले पूर्ण परब्रह्म हैं। अपनी इच्छा से ही संसार को नचाने वाले, सबके मूल कारण, सबके आधार, पर से भी परे ॥ ३६ ॥

छोटी अवस्था वाले, निरन्तर गोपवेष को धारण किये हुए, करोड़ों पूर्ण चन्द्रों की शोभा से संयुक्त, भक्तों के ऊपर दया करने वाले ॥ ३७ ॥

निःस्पृह, विकार रहित, परिपूर्णतम, स्वामी रासमण्डप के बीच में बैठे हुए, शान्त स्वरूप, रास के स्वामी ॥ ३८ ॥ मंगलस्वरूप, मंगल करने के योग्य, समस्त मंगलों के मंगल, परमानन्द के राजा, सत्यरूप, कभी भी नाश न होने वाले विकार रहित ॥ ३९ ॥ समस्त सिद्धों के स्वामी, सम्पूर्ण सिद्धि के स्वरूप, अशेष सिद्धियों के दाता, माया से रहित, ईश्वर, गुणरहित, नित्यशरीरी ॥ ४० ॥ आदिपुरुष, अव्यक्त, अनेक हैं नाम जिनके, अनेकों द्वारा स्तुति किए जाने वाले, नित्य, स्वतन्त्र, अद्वितीय, शान्त स्वरूप, भक्तों को शान्ति देने में परायण ऐसे परमात्मा के स्वरूप को ॥ ४१ ॥ शान्तिप्रिय, शान्त और शान्ति परायण जो विष्णुभक्त हैं वे ध्यान करते हैं। इस प्रकार के स्वरूप वाले भगवान्‌ कहे जाने वाले, वही एक आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द्र हैं ॥ ४२ ॥

श्रीनारायण बोले :-

ऐसा कहकर सत्त्व स्वरूप भगवान्, विष्णु अधिमास को साथ लेकर शीघ्र ही परब्रह्मयुक्त गोलोक में पहुंचे 

सूतजी बोले:-

ऐसा कहकर सत्क्रिया को ग्रहण किये हुए नारायण मुनि के चुप हो जाने पर आनन्द सागर पुरुषोत्तम से विविध प्रकार की नयी कथाओं को सुनने की इच्छा रखने वाले नारद मुनि उत्कण्ठा पूर्वक बोले ॥ ४४ ॥

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे श्रीनारायणनारदसंवादे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये विष्णोर्गोलोकगमने पञ्चमोऽध्यायः संपूर्णम ॥ ५

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